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उपासना

By tarunsantmat.com

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            उपासना

महर्षि योगानंद परमहंस जी महाराज रचित पुस्तक दुखों से निवृत्ति कैसे से लिया गया है।

उपासना शब्द की उत्पत्ति उप+ आस्+ ल्यूट से हुई है, जिसका अर्थ होता है -सेवा, परम प्रभु परमात्मा कीसेवा। जो इच्छा रहित है उसकी सेवा कैसे की जाए।

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज इस संबंध में रहते हैं-

नैन सो नैनहिं देखिय जैसे। त्वचहि त्वचा सुख पाइये जैसे।

 आत्म परमात्महि पेखे तैसे। आत्म परमात्म मिलन सुख तैसे।।

जीवात्मा परमात्मा से मिल जाए यही उनकी सबसे बड़ी उपासना कही जाती है ।

सद्गुरु महर्षि में ही परमहंस जी महाराज ने उपासना के संबंध में अपनी अनुभव बाणी का प्रतिपादन निम्न शब्दों द्वारा किया है –

अंतर में आवरण से छुटते हुए चलना परम प्रभु सर्वेश्वर की निज उपासना भक्ति है या यह पूर्ण आत्मज्ञान प्राप्त करने का अव्यर्थ साधन है इस अंतर के साधन को आंतरिक सत्संग भी कहते हैं।

(सत्संग योग भाग 4 पर संख्या 52)

 

संतमत में उपासना के निम्नलिखित चार अंग हैं।

१. मानस जप 

२.मानस ध्यान 

३. दृष्टि योग और 

४.नादानुसंधान

 

जप

गुरु प्रदत्त मंत्र की बारंबार इस तरह आवृत्ति करना है कि मन में मंत्र रहे और मंत्र में मान रहे जप कहलाता है जप तीन तरह के होते हैं

१.वाचिक जप

२ उपांशु जप और 

३. मानस जप

वाचिक जप

वाचिक जप में मंत्र का जोर-जोर से बारंबार उच्चारण करते हैं इसमें स्वयं तो सुनते ही हैं दूसरे व्यक्ति भी सुनते हैं।

उपांशु जप

इस जप में मंत्र के द्वारा उच्चारण धीमे श्वर में किया जाता है। जीभ, कंठ और ओष्ठ हिलते हैं स्वयं अपने कान से सुनते हैं ,दूसरा व्यक्ति नहीं ।इसे उपांशु जप कहते हैं। वाचिक जप से अधिक सिमट उपांशु जप में होता है इसलिए वाचिक जप से 100 गुना श्रेष्ठ उपांशु जब को कहा गया है।

मानस जप

मानस जप स्थूल रूप उपासना है इस जप में जीभ ओष्ठ और कंठ नहीं हिलते हैं ।मन ही मन मंत्र की आवृत्ति होती है। मानस जप के शब्दों को अपने कान भी नहीं सुन पाते हैं। वह उपांशु जप से हजार गुना श्रेष्ठ मानस जप है ।इसलिए मानस जप को जपों का राजा कहा जाता है।

सूफी फकीर लोग इसे जिगर कहते हैं। मानस जप पूरी एकाग्रता के साथ करना चाहिए मन यदि गुनावन करने लग जाए तो उसे हठ पूर्वक पुनः जप में लगाना चाहिए। जब पूरा अभ्यास जप का हो जाता है तब बिना प्रयास के ही मानस जप होता रहता है ।

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज 

कहां करते थे कि

– “जब ऐसा करो कि जप रहे और तुम रहो किसी मंत्र का जाप हो उसमें एकाग्रता अनिवार्य है।”

मानस ध्यान 

स्थूल सगुण रूप उपासना है। इसके लिए उत्तर या पूर्व मुंह करके बैठना चाहिए। धड़,गर्दन और सिर को एक सीध में रखकर मुंह तथा आंख को बंद कर लेना चाहिए।

मानस ध्यान में चित ध्येय तत्व पर टिका रहता है। सूफी फकीर से फिकर कहते हैं ।

ध्यान दो प्रकार का होता है ।

१सगुण ध्यान और 

२.निर्गुण ध्यान

 

सगुण ध्यान

इष्ट के स्थूल रूप और ज्योतिर्मय बिंदु रूप तथा अनहद नादों के ध्यान को सगुण ध्यान कहते हैं।

सगुण ध्यान में ही मानस ध्यान आता है। इष्ट के देखे हुए स्थूल रूप को अपने मानस पटल पर हू-ब-हू उतारने की क्रिया को मानस ध्यान कहते हैं। जिन इष्ट के नाम का मानस जप करते हैं ।उन्हीं के स्थूल रूप का मानस ध्यान करना चाहिए । इसको फकीर लोग फनाफिलखाना मुर्शिद कहते हैं । मानस ध्यान में इष्ट के मनोमय रूप पर कुछ कल तक दृष्टि के स्थिर हो जाने पर दृष्टि योग की क्रिया की जाती है।

 

 निर्गुण ध्यान

जिस आदिशब्द से सृष्टि का विकास हुआ है।उसे सार शब्द भी कहते हैं। वह त्रय गुण रहित होने से निर्गुण कहलाता है। इस सार शब्द के ध्यान को निर्गुण ध्यान कहते हैं।

दृष्टियोग

इस सूक्ष्म सगुण रूप उपासना कहते हैं। दृष्टि देखने की शक्ति को कहते हैं ।दोनों आंखों की दृष्टियों को मिलाकर मिलन स्थल पर मन को टिककर देखने की क्रिया को दृष्टि योग कहते हैं । इस अभ्यास से एकबिंदुता की प्राप्ति होती है। जिससे सूक्ष्म वा दिव्य दृष्टि खुल जाती है। तब साधक के अंदर अंधकार नहीं रहता है, अपने अंदर से उसे प्रकाश ही प्रकाश दिखता है ।मन का पूर्णतः सिमट हो जाता है ।

दृष्टि के चार भेद है ।

१.जागृत की दृष्टि 

२.स्वप्न की दृष्टि

३. मानस दृष्टि और

४. दिव्य दृष्टि

सुरत शब्द योग

सारशब्द के अतिरिक्त दूसरे सब अनहद नादों का ध्यान सूक्ष्म, कारण और महाकारण सगुण अरूप उपासना है।और सारशब्द का ध्यान निर्गुण निराकार उपासना है। सभी उपासनाओं कि यहां समाप्ति है। उपासनाओं को संपूर्णत: समाप्त किए बिना शब्दातीत पद (अनाम) तक अर्थात परम प्रभु सर्वेश्वर तक की पहुंच प्राप्त कर परम मोक्ष प्राप्त करना अर्थात अपना परम कल्याण बनाना पूर्ण असंभव है ।

आंख, कान और मुंह बंद करके केंद्रीय शब्द को पकड़ने की क्रिया को सूरत शब्द योग कहते हैं।

प्रेषक तरुण कुमार मधेपुरा बिहार 

 

 

 

 

 

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मैं तरुण कुमार मधेपुरा बिहार से हूं।

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