कर्नाटक युद्ध
मैं तरुण कुमार आप लोगों के लिए upsc के मोडर्न हिस्ट्री का का महत्वपूर्ण स्रोत लेकर अगर आप यहां पर आए हैं। इसमें कर्नाटिक युद्ध पर विस्तार से जानकारी दी गई है।
कर्नाटक का प्रथम युद्ध (1746-48)
(तमिलनाडु )कर्नाटिक का प्रथम युद्ध
१. 1740 से 1748 के मध्य ऑस्ट्रेलिया में उत्तराधिकार का युद्ध चल रहा है.
२. इस युद्ध में एक गुट को ब्रिटिश सरकार से समर्थन पदे रही थी वही दूसरे गुट को फ्रांसीसी सरकार से ।
३.इस युद्ध को लेकर भारत में भी तनाव था और 1746 में दोनों कंपनियों के बीच भारत में भी युद्ध प्रारंभ हुआ।
४.1748 में एक्स-ला शापेल की संधि के द्वारा यूरोप में युद्ध समाप्त हुआ।इस युद्ध में यह फैसला नहीं हो पाया कि दोनों कंपनियों में भारत में श्रेष्ठ कौन है?
लेकिन युद्ध की कुछ घटनाओं के कारण फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले का आत्मविश्वास बढ़ा।
नोट- 1746 में सेंट टोमें या आड्यार के युद्ध में फ्रांसीसियों की एक छोटी सी सेना ने कर्नाटिक के नवाब अनवारुद्दीन की एक बड़ी सी सेना को पराजित किया।
कर्नाटक का द्वितीय युद्ध (1749-54/55)
१. मुख्यतः डुप्ले की महत्वाकांक्षा एवं हैदराबाद तथा कर्नाटक की परिस्थितियों युद्ध के लिए उत्तरदाई थी। अंग्रेजों को भी इसमें शामिल होनापड़ा।
२. हैदराबाद में नासिरजंग एवं मुजफ्फरजंग के बीच उत्तराधिकार का युद्ध हुआ मुजफ्फरपुर जंग के तरफ से डुप्ले का जबकि कर्नाटक में अनवारुद्दीन बनाम चंदा साहब का उत्तराधिकार का युद्ध हुआ जिसमें चंदा साहब को डुप्ले का समर्थन प्राप्त था।
३. 1749 में अंबुर की लड़ाई में फ्रांसीसी गुट को सफलता मिली। हैदराबाद एवं कर्नाटक में फ्रांसीसियों के समर्थन से शासक बनाए गए।
४.डुप्ले को एक बड़ी राशि उपहार के रूप में तथा निजाम ने कुछ क्षेत्रों की आय फ्रांसीसियों को उपहार स्वरूप दिया।
५. हालांकि कर्नाटक में अनुवरूद्दीन के पुत्र मोहम्मद अली के द्वारा तिरुचिरापल्ली में फ्रांसीसियों का प्रतिरोध किया जा रहा था। स्ट्रेंजर लॉरेंस के सहयोग से मोहम्मद अली को सफलता मिली।
६.इस युद्ध के दौरान आर्कट कर्नाटक की राजधानी में क्लाइव ने फ्रांसीसियों के विरुद्ध साहस का परिचय दिया अंततः कर्नाटक पर अंग्रेजों का प्रभाव स्थापित हुआ और हैदराबाद पर फ्रांसीसियों का।
७.इस युद्ध में भी यह साबित नहीं हो पाया कि भारत में दोनों कंपनियों में कौन श्रेष्ठ है लेकिन दोनों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं में और वृद्धि हुई।
८. 1754 में अंग्रेजों के दबाव में फ्रांसीसी सरकार ने डुप्ले को वापस बुला लिया।
1755 में दोनों कंपनियों के बीच पांडिचेरी की संधि हुई।
कर्नाटक का तृतीय युद्ध (1758-63)
१.भारत में दोनों कंपनियों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा तथा ब्रिटेन एवं फ्रांस के बीच सप्त वर्षीय युद्ध (1756 से 63 )के कारण भारत में तृतीय कर्नाटक युद्ध की शुरुआत हुई।
२.1760 में वांडीवास की लड़ाई में ब्रिटिश सेनापति आयरप ने फ्रांसीसी गवर्नर लाली को पराजित किया। भारत में फ्रांसीसियों की यह निर्णायक पराजय मानी जाती है।
३.1763 में पेरिस की संधि से युद्ध समाप्त हुआ ।फ्रांसीसियों ने यह वादा किया कि वह भारत में सेना नहीं रखेंगे। भारत में व्यापारिक केंद्रों की किलेबंदी नहीं करेंगे तथा केवल व्यापार करेंगे।
नोट-फांसीसियों के हार के कारण
- ब्रिटेन की बेहतर नौसेना
- फ्रांसीसी कंपनी एक सरकारी कंपनी थी जबकि ब्रिटिश कंपनी एक निजी कंपनी थी।
- फ्रांसीसी सरकार यूरोपीय समस्याओं में भी उलझी रहती थी जबकि ब्रिटिश सरकार उपनिवेशों के मुद्दों पर अधिक सक्रिय रहती थी।
- अंग्रेजों के द्वारा बंगाल विजय का भी लाभ तृतीय कर्नाटक युद्ध में मिला।
- भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिक अधिकारी अधिक योग्य साबित हुए।
भारत में साम्राज्य विस्तार के दृष्टिकोण से कर्नाटक युद्ध का महत्व
- अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को रास्ते से हटाया ।
- युद्ध के कारण कर्नाटक एवं हैदराबाद पर अंग्रेजों का अप्रत्यक्ष प्रभाव बढ़ा।
- उत्तराधिकार का युद्ध साम्राज्य विस्तार के लिए एक अवसर है भर्तियों में राजनीतिक एकता की कमी एवं राष्ट्रीय चेतना का अभाव भी साम्राज्य विस्तार के लिए अवसर है ,यह अनुभव भी हुआ।
- युद्ध के दौरान अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों दोनों ने भारतीय सैनिकों को सेना में शामिल किया और दोनों तरफ से भारतीय सैनिकों ने साहस का परिचय दिया। अर्थात भारतीय सैनिकों की निष्ठा पर भरोसा कर सकते हैं। भारतीय सैनिकों को आधुनिक तरीकों से प्रशिक्षित किया जाए तो यह यूरोपीय सैनिकों के समान योग्य है ।तथा कम वेतन पर भी कार्य करने को तैयार है।
आधुनिक तकनीक से युक्त एवं आधुनिक तरीकों से प्रशिक्षित अंग्रेजों की एक छोटी सी सेना भारतीय की विशाल सेना का मुकाबला कर सकती है यह आत्मविश्वास भी बढ़ा।
कर्नाटक युद्ध कब हुआ
कर्नाटक युद्ध कितने चरण में हुआ
इस अध्याय में कर्नाटक युद्ध से संबंधित जानकारी आपको दी गई है।अगला अंक में बंगाल विजय को पढ़ेंगे। धन्यवाद!