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बंगाल में द्वैध शासन (1765-72)

By tarunsantmat.com

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बंगाल में द्वैध शासन (1765-72)

यूपीएससी मॉडल हिस्ट्री में आज आप लोगों के लिए बंगाल में द्वैध शासन के टॉपिक पर चर्चा करेंगे जो यूपीएससी के दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक है। इससे पहले हम लोगों ने बंगाल विजय में दो महत्वपूर्ण टॉपिक का बढ़िया से चर्चा किया पहले प्लासी का युद्ध और दूसरा बक्सर का युद्ध ।अंग्रेजों के लिए प्लासी का युद्ध मैदान में आने का पूर्ण संकेत था। और जब बक्सर का युद्ध हुआ उस युद्ध के बाद भारत के अधिकांशत भाग पर सीधा नियंत्रण स्थापित हो गया। और अंग्रेज भारत में बहुत ही शक्तिशाली शासक के रूप में उभरा और कंपनी अपना मनमानी से नवाब को बनता और नवाब को बदलते बाजार नीति बनाते व्यापार नीति बनाते सभी प्रकार की नीति अपने मनमाने फायदा को ध्यान में रखते हुए बनता और यही बात के आधार पर उन्होंने जो द्वैध शासन का नीति अपनाया था उसी के बारे में यहां पर हम लोग जानेंगे किस तरह से वह एक क्रूर शासक की भांति कार्य कर रहे हैं और किस तरह से नवाब उसका पिछलग्गू की तरह कार्य कर रहे हैं।आइये इसे देखें 👇

यह द्वैध शासन क्लाइव ने 1765 में प्रारंभ किया और वारेन हेस्टिंग्स 1772 में इसको समाप्त किया।

क्या

1765 से 1772 के बीच बंगाल में कंपनी एवं नवाब के शासन के संदर्भ में द्वैध शासन शब्द का प्रयोग करते हैं।

कंपनीके पास दीवानी अधिकार था और नवाब के पास प्रशासनिक अधिकार वास्तव में प्रशासनिक शासन का अधिकार भी और प्रत्यक्ष तौर पर कंपनी के द्वारा ही होता था।

क्यों?

  1. कंपनी सावधानी पूर्वक नियंत्रण स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रही थी
  2. प्रशासनिक अनुभव की कमी
  3. भारतीय शासको के द्वारा विरोध का संभावित भाई या डर
  4. भारत में यूरोपियन व्यापारिक कंपनी के द्वारा भी विरोध का डर भी
  5. भारतीय प्रजा की प्रतिक्रिया क्या होती है कंपनी इसको लेकर भी द्वंद में थी
  6. ब्रिटिश सरकार और कंपनी के बीच व्यापारिक मुद्दों पर समझौता हुआ था लेकिन यह कंपनी क्षेत्रीय शक्ति बन गई थी अतः ब्रिटिश सरकार का कंपनी के मामलों में हस्तक्षेप बढ़ जाता।

कंपनी की एक प्राथमिकता राजस्व पर नियंत्रण था और वह द्वैध शासन से भी पूरा हो रहा था।

नोट –द्वैध शासन के कारण बंगाल में राजनीतिक और निश्चित की स्थिति उत्पन्न हुई इससे कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हुई तथा कृषि व्यापार एवं उद्योग को भी नुकसान हुआ।

प्रमुख ब्रिटिश गवर्नर

  • क्लाइव 1757 से 1760 एवं 1765 से 67
  • वारेन हेस्टिंग्स 1772 से 1785
  • कार्नवालिस 1786 से 93
  • वेलेजली 1798 से1805
  • लॉर्ड हार्डिंग 1813 से 1823
  • विलियम बैंटिक 1828 से 1835
  • डलहौजी 1848 से1856
  • कैनिंग 1856 से1862
  • लिटन 1876 से 1880
  • रिपन 1880 से 1884
  • कर्जन 1899 से 1905 

क्लाइव ब्रिटिश साम्राज्य के संस्थापक के रूप में

१.द्वितीय कर्नाटक युद्ध में विपरीत परिस्थितियों में क्लाइव ने आर्कट में कंपनी की स्थिति को मजबूत बनाया और तमिलनाडु में कंपनी की सफलता का एक महत्वपूर्ण कारण बना

२.सिराजुद्दौला ने कासिम बाजार एवं कोलकाता के व्यापारिक केदो पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था पुनः कलाई के नेतृत्व में कोलकाता पर अंग्रेजों का नियंत्रण स्थापित हुआ।

 

३.न केवल कोलकाता पर बल्कि कलाई में पूरे बंगाल बिहार उड़ीसा पर नियंत्रण की योजना बनाई षड्यंत्र रचा और बंगाल के नवाब को प्लासी की लड़ाई में पराजित कर कंपनी को राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया।

 

४.इस सफलता के पश्चात क्लाइव ने बंगाल में और प्रत्यक्ष नीति अपनाई और सावधानी पूर्वक आगे बढ़ने की नीति आगे के गवर्नर ने इस नीति का पालन किया।

५.बक्सर युद्ध के पश्चात क्लाइव ने द्वैध शासन के माध्यम से बंगाल में कंपनी की स्थिति को और मजबूत बनाया तथा अवध एवं मुगल शासक को भी और प्रत्यक्ष तौर पर कंपनी के अधीन बनाए रखा यह नीति आगे लगभग 100 वर्षों तक चलती रही।

इसका मुख्य विंदु समाप्त हुआ।

ऊपर के टॉपिक में बंगाल में द्वैध शासन के संदर्भ में विस्तार से अध्ययन किया। और उसमें प्रमुख गवर्नर की चर्चा भी किया और इसके साथ-साथ महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र भी किया गया ।और अगला अध्याय आंग्ल मैसूर युद्ध पर होगा। जिस पर पूरा विस्तार से चर्चा होगा। क्योंकि आंग्ल मैसूर युद्ध में हम सभी युद्धों पर विस्तार से अध्ययन करेंगे और विस्तार से बताया भी जाएगा। आप लोग पेज को फॉलो करते हुए और जो यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं ।वहां तक पहुंचे तो उसकी तैयारी करने में बहुत हद तक सुविधा होगी ।लाभ मिलेगी और उसके तैयारी में एक मील का पत्थर साबित होगा ऐसा मेरा विश्वास है ।क्योंकि इसमें जितना भी कंटेंट है ।सभी बहुत ही शोध क्या हुआ है और शोध करने के बाद इसमें दिया गया है।

 

 

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मैं तरुण कुमार मधेपुरा बिहार से हूं।

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