बक्सर का युद्ध (22 अक्टूबर 1764)
🌹🌞यूपीएससी के मॉडर्न इतिहास अर्थात आधुनिक भारत के इस अध्याय में हम लोग बक्सर के युद्ध के सभी घटना का विस्तार से अध्ययन करेंगे इसमें किस तरह से बक्सर के युद्ध में हेक्टर मुनरो ने अपना बुद्धिमता से तीन शासको को पराजित किया अपने सैनिक कुशलता और अंग्रेजों की अपनी नीति ने तोड़ो और जोड़ों के आधार पर तीनों नवाबों को पराजित किया जबकि अंग्रेजों के पास सैनिकों की संख्या बहुत ही कम थी जबकि नवाबों के पास सैनिकों की संख्या बहुत थी और बहुत पुराना अनुभव रहने के बावजूद भी आधुनिकता से लड़ाई नहीं लड़ने के कारण अंग्रेजों से लड़ाई में पराजित होना पड़ा और उसके बाद जो जो संधि अंग्रेज किया अपने मन से किया अपने तरीके से किया और धीरे-धीरे उसका एक ही मकसद था कि भारत के सभी शासको पर अपना नियंत्रण स्थापित करके संपूर्ण भारत पर राज कैसे करें इस खाका का यही बक्सर युद्ध ने तैयार किया और आगे का मार्ग भी इसी युद्ध के बाद प्रशांत हुआ और अंग्रेज इसके बाद भारत में पूरा शक्तिशाली होकर उभरा।)
22 अक्टूबर 1764 को ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के शासक मीर कासिम के बीच बक्सर में युद्ध हुआ ईस्ट इंडिया कंपनी के तरफ से हेक्टर मुनरो और आमिर कासिम के तरफ से अवध के शासक सुझाव दौला मुगल शासक शाह आलम द्वितीय और बंगाल के शासक मीर कासिम लड़ाई लड़ रहे थे जिसमें हेक्टर मुनरो को सफलता मिली।
कारण-
- मीर कासिम एक स्वतंत्र शासक के रूप में कार्य करना चाहता था वही अंग्रेज अमीर कासिम को अपने अधीन बनाए रखना चाहते थे दोनों की महत्वाकांक्षा युद्ध की प्रमुख कारण बनी।
- मीर कासिम ने कुछ ऐसे कार्य किया जिसे अंग्रेजों का चिंतित होना स्वाभाविक था जैसे मुर्शिदाबाद के स्थान पर मुंगेर को राजधानी बनाना मुंगेर में टॉप एवं बंदूक बनाने का कारखाना लगाया राजकीय में वृद्धि का प्रयास किया रामनारायण नामक एक ब्रिटिश अंग्रेजों के करीबी अधिकारी को दंडित किया।
- मुक्त व्यापार को लेकर नवाब एवं कंपनी के बीच अभी भी विवाद जारी था कंपनी के कर्मचारी अवैध तरीके से भारतीय व्यापारियों से दस्तक फ्री पास की सुविधा उपलब्ध करा रहे थे इससे नवाब को आर्थिक नुकसान हो रहा था।
- इस मुद्दे पर कंपनी एवं नवाब के बीच बातचीत हुई लेकिन कोई सहमति नहीं बन पाई।
- अंततः मीर कासिम ने भारतीय व्यापारियों को भी कर मुक्त व्यापार की सुविधा प्रदान की।
- इसी मुद्दे को लेकर 1763 में कंपनी और नवाब के बीच टकराव की शुरुआत हुई और इसकी परिणति बक्सर युद्ध के रूप में सामने आई।
नोट -1763 में कंपनी ने आमिर कासिम को हटाकर पुनः मीर जाफ़र को नवाब बनाया मीर कासिम ने अवध से सहायता मांगी।
- -1765 के प्रारंभ में मिर्जापुर की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र नज्मू दौला को अंग्रेजों ने बंगाल का नवाब बनाया फरवरी 1765 में कंपनी और बंगाल के नवाब के बीच संधि हुई बंगाल के सैनिकों की संख्या में कटौती की गई तथा बंगाल का प्रशासन एक नायब सूबेदार की सहायता से संचालित किया जाएगा और इसकी नियुक्ति कंपनी के द्वारा की जाएगी।
- -क्लाइव 1757 से 60 तक बंगाल का गवर्नर रह चुका था 1765 में दूसरी बार बंगाल का गवर्नर बनाकर भेजा गया 1767 तक इसका कार्यकाल था इसने मुगल एवं अवध के शासक के साथ इलाहाबाद में अलग-अलग संधि की।
- –अगस्त 1765 में मुगलों से संधि-को इलाहाबाद की संधि कहते हैं।
- -कंपनी मुगल शासक को 26 लख रुपए वार्षिक पेंशन के रूप में देगी तथा कोड़ा एवं इलाहाबाद का क्षेत्र भी।
- -मुगल बादशाह ने कंपनी को बंगाल बिहार उड़ीसा का दीवानी (राजस्व ,दीवानी विवाद )अधिकार प्रदान किया।
अगस्त 1765 में अवध के साथ इलाहाबाद की
संधि
- -कंपनी ने अवध से कोड एवं इलाहाबाद का क्षेत्र प्राप्त किया।
- -एक बड़ी राशि 50 लख रुपए मुआवजे के रूप में ली।
- -अवध की सुरक्षा की जिम्मेदारी कंपनी पर होगी और इसका खर्च अवध को वहन करना होगा।
इस अध्याय में हम लोगों ने बक्सर युद्ध के विषय में पढ़ा।
इसके बाद अगला अंक में बंगाल में कंपनी का द्वैध शासन के संबंध में विस्तृत जानकारी के साथ अध्ययन करेंगे।इस अध्याय में जो भी पढ़ें हैं।उसको बार बार रीविजन करने की बहुत आवश्यकता है।