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महर्षि मेंहीं पदावली की प्रश्नोत्तरी

By tarunsantmat.com

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महर्षि मेंही पदावली की प्रश्नोत्तरी

🙏जय गुरु 🙏

आज आप लोगों के लिए स्वामी छोटेलाल बाबा द्वारा रचित पुस्तक “महर्षि मेंहीं पदावली की प्रश्नोत्तरी” से बहुत ही सार गर्वित बातों को आप लोगों के लिए लाए हैं ।अगर आप पढ़ेंगे तो आपके मन में जो भी जिज्ञासा है उसका समाधान अवश्य होगा जो भी मन में प्रश्न है उसका उत्तर जरूर ही आपको मिलेंगे क्योंकि सभी प्रश्नों का उत्तर हमारे गुरु महाराज द्वारा रचित पुस्तक “महर्षि मेंहीं पदावली” में है। पदावली को तो सब पढ़ते हैं लेकिन उसका अर्थ बहुत ही गहन है। बहुत ही मार्मिक है। तो हम लोग लिए “महर्षि मेंहीं पदावली की प्रश्नोत्तरी” से प्रश्न और उत्तर का एक लंबा श्रृंखला का अवलोकन करते हैं ।जिससे आपके मन के संशय का समाधान हो सके।

१.प्रश्न -हम संतमत के सत्संगी प्रत्येक दिन स्तुति प्रार्थना क्यों किया करते हैं?

उत्तर- स्तुति का अर्थ होता है- प्रशंसा करना गुणगान करना और प्रार्थना का अर्थ होता है नम्रता पूर्वक किसी से कुछ मांगना हम जिसकी प्रशंसा करते हैं वह हम पर प्रसन्न होता है। और हम जिसकी निंदा करते हैं वह व्यक्ति हमसे अप्रसन्न होता है। जो हम पर प्रसन्न होता है वह हमारी भलाई करता है और हमें दुख से निकलते हैं और दुख में साथ भी देते हैं और जो हम पर अप्रसन्न रहता है वह हमारी बुराई करता है। हो सके तो हमें दुख भी पहुंचाता है।

संतमत के अनुयाई प्रतिदिन ईश्वर संत और गुरुदेव की स्तुति करते हैं इससे ईश्वर संत और गुरु हम पर प्रतिदिन प्रसन्न रहते हैं और हम पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं जो हम पर प्रसन्न रहा करेगा वह हमारी मांग अवश्य पूरी करेगा। स्तुति के पद्द में इष्ट देव के गुणगान के साथ-साथ उनसे हमारी कोई मांग भी होती है और प्रार्थना के पद में भी इष्ट देव से किसी पदार्थ की मांग के साथ-साथ कुछ ना कुछ उसका गुणगान भी रहता है ।हम जिनके गुणगान करना छोड़ देंगे वह अपनी कृपा हमारी ओर से हटा लेंगे तब हमें हानि होती है लाभ नहीं होती है। हम जिसकी निंदा सदैव करते हैं या करेंगे वह हमसे कभी खुश नहीं रहा करेगा और वह हमारा शुभ नहीं सोचेगा।

जो प्रत्येक दिन स्तुति प्रार्थना नहीं करते हैं वह अपनी बहुत बड़ी हानि कर रहे हैं

प्रेम भक्ति गुरु दीजिए, विनवौं कर जोड़ी।

 पल-पल छोह न छोड़िए, सुनिए गुरु मोरी।।

                                -(महर्षि मेंहीं पदावली से)

 गुरु पद पंकज सेवा तीसरी भक्ति अमान।

 चौथी भक्ति मम गुन गन, करइ कपट तजि गान।।

                       -(मानस की नवधा भक्ति से)

२.प्रश्न- यदि प्रतिदिन सत्संग न करके प्रतिदिन केवल ध्यान अभ्यास पर ही अधिक बल दिया जाए तो क्या अच्छा नहीं होगा?

उत्तर- प्रतिदिन सत्संग और ध्यान अभ्यास दोनों करना चाहिए। जो प्रतिदिन सत्संग न करके केवल ध्यान अभ्यास ही किया करेगा उसकी हानि ही होगी लाभ नहीं होगी ।सत्संग करने से धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान मिलता है ।और ध्यान अभ्यास करने से प्रेरणा भी मिलती है ।ज्ञान विवेक के अभाव में कोई भवसागर पार नहीं कर सकता है।

मानस की नवधा भक्ति में पहले संत संग अर्थात सत्संग करने के लिए कहा गया है। फिर ध्यान आदि ।

ऋषि मुनि और संत, ध्यान को छोड़कर भी सत्संग के वचनों को सुना करते हैं ।

मानस के पद में है-

 जीवन मुक्त ब्रह्म पर ,चरित सुनहिं तजि ध्यान।

 जे हरि कथा न करहि रति, तिनके हिय पाषान।।

विनय पत्रिका में है-

तुलसीदास हरि गुरु करुणा बिनु, विमल विवेक ना होई ।

बिनु विवेक संसार घोर निधि, पार न पावही कोई ।।

 

 नित्य सत्संगति करो बनाई अंतर बाहर द्वै विधि भाई ।धर्म कथा बाहर सत्संगा, अंतर सत्संग ध्यान अभंगा।।

३.प्रश्न- सामूहिक स्तुति प्रार्थना करना अच्छा होता है क्या व्यक्तिगत स्तुति प्रार्थना करना?

उत्तर- यदि अधिक से अधिक लोग एक स्थान पर एकत्रित होकर या जमा होकर के प्रतिदिन स्तुति प्रार्थना करते हैं तो इससे हमारे गुरुदेव हम पर विशेष प्रसन्न होंगे। साधारण लोगों के लिए सामूहिक स्तुति प्रार्थना विशेष लाभदायिनी होती है। सामूहिक स्तुति प्रार्थना में यदि हम किसी कारण बस भाग नहीं ले सके तो हमें एकांत में भी स्तुति प्रार्थना कर लेनी चाहिए ।स्तुति प्रार्थना कभी छोड़ने नहीं चाहिए। किसी न किसी समय स्तुति प्रार्थना अवश्य कर लेनी चाहिए।

४.प्रश्न- जीवन में यदि कोई विपत्ति या दुख-शोक आ जाए तो हमें क्या करना चाहिए?

उत्तर- जीवन में यदि कोई विपत्ति या दुख-शोक आ जाए तो हमें दिन-रात गुरु महाराज द्वारा जो मंत्र दिया गया है। गुरु मंत्र का जाप करना चाहिए। यदि गुरुदेव थोड़ी भी कृपा हम पर कर देंगे तो हमारी विपत्ति या दुख शोक शीघ्र ही दूर हो जाएगा।

जौं गुरु कृपा तनिहुं विचारे, मिटय कल्पना सोग हे।

गुरु सम दाता साहिब नाहीं ,गुरु गुरु जपिये लोग हे।।

५.प्रश्न-भक्त को किस पर आशा भरोसा रखना चाहिए?

उत्तर- भक्ति को भगवान पर आशा भरोसा रखना चाहिए

किसी सांसारिक व्यक्ति पर नहीं ।

जो भगवान को छोड़कर किसी सांसारिक व्यक्ति पर आशा भरोसा रखता है उस पर भगवान प्रसन्न नहीं रहते हैं। क्योंकि उन पर भक्त का विश्वास नहीं होता। जैसे यदि कोई स्त्री अपने पति पर आशा भरोसा नहीं करके दूसरे पुरुष पर आशा भरोसा रखें तो इससे उसके पति उस पर प्रसन्न नहीं रहेंगे। ऐसा ही भगवान भक्त की सारी इच्छाएं पूर्ण करने की सामर्थ्य रखते हैं। भगवान एक निष्ठ भक्त का योग क्षेम करते हैं। भगवान के द्वारा आवश्यक पदार्थ की प्राप्ति करना और प्राप्त पदार्थ की सुरक्षा करना भक्ति का योग क्षेम है।

 

मोर दास कहाइ नर आशा ,करइ तो कहहु कहा विश्वासा। 

(मानस उत्तरकांड श्री राम वचन)

गुरु की नित्य कर पूजा जगत इन सम नहीं दूजा।

 मेंंहीं को आन नहीं सूझा फकत गुरु ही आधारा है।

(महर्षि में हीं पदावली)

महर्षि मेंहीं पदावली की प्रश्नोत्तरी” में पांच प्रश्नों की श्रृंखला यहां पर प्रस्तुत किया। आपको पढ़कर मन के जो विकार हैं वह जरूर दूर हुए होंगे। ऐसा हमें विश्वास है ।इसी तरह के और भी मन में प्रश्न हो तो अगला “महर्षि मेंहीं पदावली की प्रश्नोत्तरी” श्रृंखला जारी है आप जरूर पढ़ें।

 

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मैं तरुण कुमार मधेपुरा बिहार से हूं।

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