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स्तुति प्रार्थना

By tarunsantmat.com

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       स्तुति-प्रार्थना

महर्षि योगानंद परमहंस जी महाराज रचित पुस्तक दुखों से निवृत्ति कैसे से लिया गया है।

स्तुति का अर्थ -”ईश्वर का गुणगान करना है”

संसार के प्रत्येक धर्म में प्रार्थना करने की बात है स्तुति विनती पूजा की एक पद्धति मात्रा नहीं है बल्कि आंतरिक शक्ति जागृत करने का एक साधन है पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की तरह प्रार्थना में एक बाल है जो साध्य को अपनी ओर आकर्षित करता है जीवन की आधारभूत व्यवस्था अतः प्रज्ञा में निहित है प्रार्थना उसे अंतरात्मा से जुड़ने की एक अद्भुत कला है जीवात्मा का परमात्मा से मिलने का एक सरल माध्यम है प्रार्थना रेडियम धातु की भांति प्रकाश एवं ऊर्जा उत्पन्न करती है यह हमारे शरीर एवं मां की सूप्त ऊर्जा को प्रस्फुटित करने का साधन है। एक अज्ञात देश की यात्रा है जहां अपने पूर्ण सत्य का स्रोत है प्रार्थना अपने घर की स्मृति है हृदय की आवाज का नाम प्रार्थना है प्रार्थना का प्रभाव अंतरण चतुष्य पर भी होगा जब राग द्वेष रहित होंगे मोहग्रसित प्राणी प्रार्थना भी अज्ञानतापूर्वक ही करेगा निरंतर अभ्यास से निरस्त चित्र में ज्योत्सना आ जाएगी और जीवन की धारा बदल जाएगी वृत्ति उर्ध्वगति होने लगेगी। व्यक्ति अपने अंतर निहित दंभ वा असुरक्षा भ्म से मुक्ति पाकर सचेत हो जाएगा ।वह विनम्र भाव संपन्न हो जाता है ईश्वर की दिशा में जाने वाली सुखद यात्रा का नाम प्रार्थना है जिस प्रकार लेजर की किरणें शरीर के अंदर स्थित पथरीले पदार्थों को तोड़ देती है उसी प्रकार प्रार्थना मां की ग्रंथियां को तोड़ती है और आध्यात्मिक विकास में आने वाले अवरोधों को दूर करती है स्तुति प्रार्थना

व्यक्ति में शांति के साथ-साथ स्वच्छ प्रज्ञा का संचार करती है भावनाओं की सुगंध से आपद मस्तक उत्प्रोत हो जाती है और आंखों से विषम समताप्त आंसुओं की वायरल धारा मां के कलश कलमास को धो देती है व्यक्ति की इच्छा ईश्वर की इच्छा में रूपांतरित होने लगती है जीवन से सांसारिक आकर्षण समाप्त हो जाते हैं आने वाले भविष्य में जो भी कठिनाइयां है प्रार्थना प्रतिरक्षात्मक औषधि है रोगी भाव बाइबल प्रार्थना करके ऊर्जा के स्रोत से संपर्क साध लेता है और शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ कर लेता है प्रार्थना जीवन के कासन का बोझ हल्का बनती है और जीवन यात्रा को माधुरी पूर्ण कर यात्री को संतुष्टि प्रदान करता है व्यक्ति को गिरनाप्रतिशोध क्रूर व्रतियों के बोझ से मुक्त करती है प्रभु जी की शक्ति स्रोत में अब वहां की बेला आ जाती है परमात्मा ऊर्जा से संबंध होते ही संपूर्ण देवी संप्रदाय हमें वर्णन करने को आतुर होती है और आसुरी शक्ति नमन कर मैत्री लाभ देने लगती है प्रार्थना के लिए कोई विशेष समय स्थान या आसन की अनिवार्यता नहीं है यह कभी भी कहीं भी किसी भी अवस्था में की जा सकती है तथापि सहज एवं सरल भाव से यदि प्रातः एवं सायं काल की जाए तो परम उपयोगी सिद्ध होती है ब्रह्म मुहूर्त में सभी मनुष्यों देवताओं की उपस्थिति का लाभ भी आपको मिलेगा ब्रह्म बेला में वातावरण बिल्कुल शांत रहता है अंतरण सुग्राही होता है और चारों ओर प्रकृति की ऊर्जा का साम्राज्य रहता है चारों तरफ ऋषि किरण फैली रहती है जो विशेष फलित होती है मंदिर में पहले से ही आध्यात्मिक स्पंदन प्रचुर मात्रा में बरस रही है प्रार्थना केवल कृष्ण शब्दों के उच्चारण मात्र नहीं है हृदय की गहराई से छूटकर आई भाषा चाहे कितनी भी सरल क्यों ना हो प्रार्थना भाव प्रधान है।

आज के समय में प्रार्थना व्यक्ति और समाज दोनों के लिए हितकारी है नैतिक पतन के कारण मानवता विनाश के कगार पर खड़ी है व्यक्ति की आंतरिक सृजनात्मक शक्ति निष्क्रिय परी है प्रार्थना की सहज विधि से उसे सक्रिय किया जा सकता है प्रार्थना में अपने अवगुणों का अवलोकन करने का अवसर मिलता है हम स्वीकार करते हैं –

मो सम कौन कुटिल खल कामी।

 आधम है कौन अधिक मोते जग, सब पतितन में नामी।।

~गोस्वामी तुलसीदास

प्रार्थना से हृदय निर्मल और शांत होता है।

महात्मा गांधी ने कहा 

“मुझे रोटी ना मिले तो मैं व्याकुल नहीं होता पर प्रार्थना के बिना मैं पागल हो जाऊंगा सत्य ही ईश्वर है इसे उध्दृत”

प्रार्थना जैसे धर्म का सार है वैसे ही मानव जीवन की आत्मा है जो अपने भीतर दिव्या ज्योति जगाने को तड़प रहा हो उसे प्रार्थना का सहारा लेना होगा जिसने प्रार्थना के जादू का अनुभव किया है वह कई दिनों तक आहार के बिना तो रह सकता है परंतु प्रार्थना के बिना तो एक क्षण भी नहीं रह सकता है कारण प्रार्थना के बिना भीतरी शांति नहीं मिलती है मां मुख हृदय की एकता हो उसे समय यदि प्रार्थना की जाए तो वह प्रार्थना परमात्मा निश्चित सुन लेते हैं। मुगल सम्राट बाबर का पुत्र हुमायूं बीमार पड़ गया अनेक उपचार किया लेकिन स्वस्थ बिगड़ा ही गया हुमायूं की यह दशा देखकर आत्मविश्वास के साथ बाबर ने संकल्प किया कि वह अपने प्राण के बदले जीवन के बदले ईश्वर से हुमायूं की प्राण की रक्षा का भीख मांगेगा संकल्पित होकर बाबर ने हुमायूं के पलंग के तीन बार परिक्रमा आंख बंद करके एक आकर्षित हो पूर्ण समर्पित भाव से प्रार्थना की है अल्लाह परमेश्वर यदि मेरे प्राण के बदले में हुमायूं स्वस्थ हो सकता है और वह जीवित रह सकता है तो मैं इसे उसे पर न्यूज़ खबर करता हूं हुमायूं के सारे रोग मेरे ऊपर आ जाएं ईश्वर की लीला विचित्र है अगले दिन से हुमायूं स्वस्थ होने लगा और बाबा का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा हुमायूं बिल्कुल स्वस्थ हो गया और बाबर 26 दिसंबर 1530 को आगरा में संसार से विदा हो गए हम किसी भी धर्म मजहब संप्रदाय आदि के क्यों ना हो अथवा किसी भाषा भारती के क्यों ना हो परमात्मा की प्रार्थना अपनी मनोनीत भाषा में अवश्य करें सभी भाषा उन्हीं से आई है इसलिए इस शब्द की हृदय की पुकार किसी भाषा में करें कोई हर्ज नहीं प्रार्थना इस प्रकार से कर सकते हैं।

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मैं तरुण कुमार मधेपुरा बिहार से हूं।

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