बंगाल विजय -(प्लासी की लड़ाई)
बंगाल विजय
बंगाल विजय में मुख्य रूप से हम लोग तीन बातों पर प्रमुखता से अध्ययन करेंगे प्लासी की लड़ाई बक्सर का युद्ध और द्वैध शासन।
पलासी की लड़ाई
प्लासी की लड़ाई 23 जून 1757 में ईस्ट इंडिया कंपनी बनाम बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच हुआ जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी का नेतृत्व लाइव कर रहे थे
कारण–
१.1717 में मुगल शासक फारूक सियार ने ₹3000 वार्षिक शुल्क के बदले कंपनी को बंगाल बिहार उड़ीसा में मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान की इस मुद्दे को लेकर बंगाल के नवाब एवं कंपनी के बीच तनाव की स्थिति बनी रहती थी
नोट-यह अधिकार कंपनी को दिया गया था ना की कंपनी के निजी व्यापार पर।
२. 1756 में जब सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना तब उसके उसके कुछ संबंधियों ने (घसीटी बेगम,शौकतगंज) सिराजुद्दौला की सत्ता को चुनौती दी अंग्रेजों ने नवाब के विरोधियों का समर्थन किया।
३.द्वितीय कर्नाटक युद्ध में तमिलनाडु में अंग्रेजों को जो सफलता मिली उसे वह उत्साहित थे और बंगाल की परिस्थितियों उन्हें हस्तक्षेप के अनुकूल लगा।
४.कंपनी ने का नवाब को युद्ध के लिए उकसाया जैसे नवाब के मना करने के बावजूद कंपनी ने कोलकाता की किलेबंदी जड़ी राखी विरोधियों को संरक्षण दिया तथा भारतीय वस्तुओं पर कोलकाता में कर लगाया।
५.नवाब ने 1756 में कासिम बाजार और कोलकाता पर नियंत्रण स्थापित किया कोलकाता की जिम्मेदारी मानिकचंद नामक अधिकारी को सौंपें।
नोट -कंपनी के कुछ अधिकारियों ने फूलटा द्वीप में शरण ली और मद्रास से मदद मांगी।
-ब्रिटिश अधिकारी होलवेल ने नवाब पर यह आरोप लगाया कि कोलकाता पर नियंत्रण के पश्चात नवाब ने अंग्रेजों के साथ और मानवीय व्यवहार किया (काल कोठरी की दुर्घटना)
हालांकि यह घटना प्रमाणित नहीं है लेकिन इसने अंग्रेजों को प्रतिशोध के लिए प्रेरित किया।
क्लाइव के नेतृत्व में मद्रास से एक सी भेजी गई 1757 के प्रारंभ में मानिकचंद को पैसे देकर क्लाइव ने कोलकाता पर नियंत्रण स्थापित किया और नवाब को हटाने की योजना बनाने लगा।
इस योजना में नवाब के कुछ बड़े अधिकारी एवं धनी व्यापारी शामिल थे जैसे आमिर जफर राय दुर्लभ खादिम खान जगत सेठ अमी चंद इत्यादि
जून 1757 में पलासी नामक स्थान पर दोनों के सेवा के बीच कुछ घंटे के लिए युद्ध हुआ और षड्यंत्र के कारण अंग्रेजों को आसानी से सफलता मिली।
🌹नोट -मार्च 1757 में क्लाइव ने फ्रांसीसियों के व्यापारिक केंद्र चंद्र नगर पर कब्जा किया नवाब ने कोलकाता का नाम अलीपुर रखा था और फरवरी 1757 में कंपनी और
-नवाब के बीच अलीपुर की संधि हुई थी नवाब ने कोलकाता के किलेबंदी के अधिकार को मान्यता प्रदान कर दी थी।
नबाव की असफलता के कारण
- अंग्रेजों के पास बेहतर नेतृत्व (क्लाइव के रूप में)
- अंग्रेजों की नौसैनिक श्रेष्ठता (मद्रास से आसानी पूर्वक बंगाल तक मदद पहुंचाया गया। )
- आत्मविश्वास (कर्नाटिक में सफलता के कारण, उन्नत हथियार के कारण)
- नवाब के महत्वपूर्ण अधिकारियों का अंग्रेज के साथ मिल जाना
- नवाब की अदूरदर्शिता एवं अयोग्यता जैसे कंपनी की शक्ति का आकलन सही तरीके से न करना, इतने बड़े पैमाने पर षड्यंत्र और नवाब को इसकी जानकारी नहीं थी।
- राजनीतिक एकता की कमी
- राष्ट्रीय चेतना का अभाव
अंग्रेजों या कंपनी के दृष्टिकोण से पलासी की लड़ाई का महत्व
- एक बड़ी राशि कंपनी को उपहार एवं मुआवजे के रूप में दी गई।
- कंपनी को व्यापारिक सुविधा भी दी गई जैसे कंपनी की कर्मचारियों को निजी व्यापार पर भी कर नहीं देना होगा।
- कंपनी को 24 परगना नामक क्षेत्र की जमींदारी दी गई।
- समय-समय पर कंपनी के अधिकारी नवाब से पैसे ( धन)लेते रहते थे।
- इन पैसों का उपयोग भारतीय उत्पादों को खरीदने तथा भारत में प्रशासन एवं साम्राज्य विस्तार के लिए किया जाने लगा।
कंपनी को राजनीतिक लाभ
बंगाल में कंपनी को राजनीतिक शक्ति के रूप में देखा जाने लगा।
बंगाल के प्रशासन पर कंपनी का अप्रत्यक्ष प्रभाव स्थापित हुआ जैसे 1757 में कंपनी ने मीर जाफ़र को नवाब बनाया जिससे कंपनी को अधिक फायदा हुआ तथा 1760 में मिर्जापुर को हटाकर मीर कासिम को नवाब बनाया
कंपनी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बधाई और पलासी के विजय का लाभ तृतीय कर्नाटक युद्ध में एवं आगे चलकर बक्सर के युद्ध में भी मिला।
नोट -1760 में मीर जाफ़र को हटाकर मीर कासिम को कंपनी ने नवाब बनाया
-मीर कासिम ने वर्धमान, मिदनापुर एवं चटगांव की जमींदारी अंग्रेजों को दी।
आधुनिक इतिहास के इस अध्याय में हम लोगों ने बंगाल विजय के पहले टापिक प्लासी की लड़ाई को पड़ा आगे बक्सर का युद्ध हम लोग पढ़ेंगे।