गुरु महाराज ने जब मरे हुए बच्चे को जीवित किया था

गुरु महाराज ने जब मरे हुए बच्चे को जीवित किया था 

गुरु महाराज के पास बभनगमा जो भागलपुर से दक्षिण हैं, एक छोटा सा गांव, वहा से एक सज्जन आए ,और गुरु महाराज से सतसंग का समय मांगते हैं, निष्ठा देखिए, गुरु में और उनकी करुणा उनकी मानव जीवन की सफ़लता ज़रा देखिए, आए और सतसंग का समय मांगने लगें, गरीब थे लेकिन श्रद्धा अन्नय

इतनी श्रद्धा थी, उस सज्जन को गरीब होते हुए भी, संत सद्गुरु महाराज को अपने दरबाजे पर ले जाना चाहते थे, निवेदन किए, गुरु महाराज तो ऐसे महापुरुष थे, संत सद्गुरु थे, श्रद्धा वे देखते थे, लेकिन समय तो पूज्य संतसेवी जी महाराज बताते थे,

उन्ही के पास भेज दिए ,उनसे मिल लीजिए, अब संतसेवी जी महाराज तो बहुत संवेदनशील महापुरुष थे, गुरु महाराज कहीं जायेंगे तो बहुत तहकीकात करते थे, बहुत खोज पूज करते थे,

वह गरीब आदमी जब पूज्य संतसेवी जी महाराज के पास जब गए, और बोले हमको गुरु महाराज भेजे हैं ,मैं गुरु महाराज को ले जाना चाहता हूं, तो पूज्य संतसेवी जी महाराज पूछे, आप जो गुरु महाराज को ले जाना चाहते हैं, कितना घर हैं आपके पास, कहा रुकाएंगे, सज्जन कहता है ,सरकार घर तो हमारे पास एक ही हैं, उस घर में कौन कौन रहते हैं, वह गरीब आदमी ने कहा मैं रहता हूं, मेरी पत्नी रहती हैं, मेरे बच्चे रहते हैं, तो पूज्य संतसेवी जी महाराज पूछते हैं ,भोजन कहा बनाते हैं, कहा उसी घर में भोजन बनाते हैं, फिर पूछे पशु को कहा रखते हैं, बोले पशु को भी उसी घर में बांधता हूं, फिर पूछे अतिथि आते हैं तो कहा ठहरते हैं, बोले उसी घर में ठहरते हैं, एक ही घर में इतना काम, फिर गुरु महाराज कहा रुकेंगे आपके घर में, कहा रुकेंगे, ऐसा जो बोले गुरु महाराज सुन रहे थे, गुरु महाराज बोले तब तो इसके घर में सतसंग नहीं न होगा, देखिए कितने करुणाबान थे गुरु महाराज, गुरु महाराज कहते हैं पूज्य संतसेवी बाबा से, तब तो इसके घर में सतसंग नहीं होगा, उस सज्जन को बुलाए, गुरु महाराज, गुरु महाराज पूछते हैं आपके गांव में स्कूल हैं , बोले हां सरकार स्कूल हैं, गुरु महाराज कहते हैं उस स्कूल में एक चौकी रख दिज्येगा, चौकी हैं घर में बोले हां सरकार चौकी तो हैं, एक चौकी हैं, बोले ठिक हैं, आप अपनी चौकी नहीं तो गांव वाले से चौकी मांगकर , गरम पानी से धोकर के स्कूल में रख दीजिएगा, हमलोगो के पास बिछावन हैं, हमलोगो के पास खाने पीने की चीज है, हमलोग आकर सतसंग कर देंगे, कितनी करुणा थी गुरु महाराज को, वे सज्जन जो बभनगामा के थे, वे सज्जन समय कुछ और मांगते थे, गुरु महाराज कहते थे, इस अमुक तिथि को लीजिए, मान गए बात गुरु महाराज की, गए गांव और हल्ला कर दिए, गुरु महाराज आ रहे हैं, बहुत लोगों ने कहा ये पागल हों गया है, ये गरीब आदमी और इतने बड़े संत इसके घर आयेंगे, कभी आयेंगे इनके यहां, लेकिन समय पर वे पंडाल बना लेते हैं, छोटा पंडाल ही बनाते हैं दरवाजे पर ही, और बड़ा उमंग, जिस दिन सतसंग हुआ उस दिन सुबह में पंडाल बनके तैयार हो गया, अपराहन बेला के सतसंग गुरु महाराज अभी करते , गुरु महाराज भी यहां से चलने की तैयारी करते, लेकिन सुबह ही सुबह उनके पुत्र की मृत्यु हों गई, उस सतसंगी के घर, उनके पुत्र की मृत्यु हुई , तो बहुत विरोधी लोग भी होते हैं, विरोधी लोग आकर के कहने लगे, देखो ये सतसंगी बनता हैं, और मनुष्य की पूजा करता है, मेही दास भगवान हों गए, अरे सतसंग करने का किया फल होता हैं देख लिया, करने के पहले ही तुम्हारा पुत्र मर गया, अब इस पुत्र को फेक दो गाढ़ दो, और खबर कर दो की सतसंग नहीं होगा, उस सज्जन ने क्या कहा, उसने यहीं कहा आप लोग अनाप शनाप हमारे गुरु महाराज के प्रति नहीं बोलिए, सतसंग तो हरगिज लौटाने नहीं जाऊंगा, पुत्र चला गया तो कोई बात नहीं , पुत्र गया तो गया, लेकिन जीवन से सतसंग नहीं जानें दूंगा, सतसंग पर कितनी निष्ठा, गुरु महाराज आए अपराहन बेला में, और आए तो कुछ पूछ ताछ नहीं, आए और सीधे मंच पर जाके बैठ गए, पूज्य संतसेवी जी महाराज थे साथ में, उनको बोले सतसंग प्रारंभ करने के लिए, स्तुति पाठ शुरू हो गया, गुरु महाराज मांगा लेते हैं माइक अपने पास, और प्रवचन करने लगते हैं, विरोधी लोग कहते हैं इतने निर्दयी लोग होते है, घर में बेटा मरा हुआ है और सतसंग कर रहे हैं, फिर गुरु महाराज तो अपनी मौज में सतसंग करते रहें, सतसंग करने के बाद आरती होने लगीं, पहली आरती हुई, “उल्टी अलल तुलसी तन तीजे “ और यहीं पर आरती गुरु महाराज रुकवा देते हैं, और सामने गृहपति बैठें हुए थे, उनको इसारा करते हैं, खड़ा होइए, उनको पूछने लगे आपको सतसंग कराने का मन नहीं था, तो सतसंग नहीं कराते, आप तो ऐसे खड़े हैं मेरे सामने, लगता हैं आपका पुत्र ही मर गया हों, ऐसा जब कहा लोगो ने , कहा सरकार इसका पुत्र सचमुच में मर गया है, गुरु महाराज जानते हुए भी चौक उठे , चौक कर के कहते हैं हां इसका पुत्र मर गया है, चलिए मैं देखने जाता हूं,

गुरु महाराज के चरणों में जो फूल चढ़ाते थे, एक उठा लेते हैं हाथ में, और जाते हैं उस बच्चे के पास , वह बच्चा सुबह का मरा हुआ था, गुरु महाराज शाम में देखने गए थे, एक पतली चादर ओढ़ाया हुआ है बगल में उसकी मां सिसक कर रो रही है

गुरु महाराज के जाते ही ,उनकी मां वहा से हट गई, गुरु महाराज उनकी चादर हटवाते है , और उस बच्चे के माथे पर फुल रख देते हैं, फिर आंख बन्द करते हैं फिर खोलते हैं, बहुत लोग जमा थे, गुरु महाराज कहते हैं इसकी मां कहा है , उनकी मां को बुलाया गया, गुरु महाराज कहते हैं इनको उठा के दूध पिलाइए,

जब गुरु महाराज ऐसा कहते हैं, तब उनकी मां कहती हैं, गुरु महाराज ये तो सुबह का ही मर गया है, अब दूध कहा से पिएगा

लोगों ने कहा गुरु महाराज जो कहते हैं वह कीजिए, उस बच्चे की मां बच्चे को उठा लेती है, जैसे ही सीने से लगाती हैं वह बच्चा जीवित होके दूध पीने लगता हैं, सोचिए उनकी श्रद्धा उनकी निष्ठा, किनके प्रति संत सद्गुरु महाराज के प्रति, किनके प्रति सतसंग के प्रति, उन्होंने कहा था पुत्र गया तो गया लेकिन जीवन से सतसंग नहीं जानें दूंगा, सतसंग को पकड़े रहा तो पुत्र भी लौट कर के आ गया, गुरु महाराज को जीवित करना पड़ा, उनकी श्रद्धा को देखकर, उनकी करुणा को देखकर, ये समरथ पुरुष होते है , सन्त गरीब दास जी कहते हैं

 

” समरथ का सर न लिया , ताहि न चम्पे काल |

पारब्रह्म का ध्यान धरत, होत न बाका बाल ||”

 

❣️🎈 प्रेषक :-✍️ tarun santmat 🌹

Madhepura बिहार

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